“बहुमत है, समर्थन चाहिए! NDA को निर्विरोध उपराष्ट्रपति का क्रश लग गया है

सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक
सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक

9 सितंबर को देश का नया उपराष्ट्रपति चुना जाएगा, और एनडीए (NDA) ने अपना पत्ता खोल दिया है — तमिलनाडु के अनुभवी नेता सीपी राधाकृष्णन को मैदान में उतारकर। अब दिलचस्प बात ये है कि जहां एनडीए को साफ बहुमत प्राप्त है, वहीं रक्षामंत्री राजनाथ सिंह खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से समर्थन मांगने पहुंच गए।

भाई, जब पास में बहुमत की थाली हो, तो भोजन के लिए दूसरों के घर क्यों जाना?

क्या कहता है नंबर गेम?

  • लोकसभा में: 542 सांसद

  • राज्यसभा में: 240 सांसद

  • कुल मतदाता: 782

  • उपराष्ट्रपति बनने के लिए जरूरी वोट: 392

NDA के पास: 427 सांसदों का समर्थन
विपक्ष के पास: 355 सांसद
नॉन-अलाइन सांसद: लगभग 133

मतलब, NDA आराम से जीत सकता है, फिर भी… कांग्रेस को आंख मारना ज़रूरी हो गया?

राजनाथ का “करो या कूटो” दौरा:

भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले राजनाथ सिंह ने जैसे ही खरगे जी से समर्थन की चाय मांगी, राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई।

कांग्रेस वालों ने कान में फुसफुसाया – “ये वही लोग हैं जो कल तक हमें तुष्टीकरण गैंग कहते थे, अब समर्थन मांगने आए हैं?”

बीजेपी का गणित VS राजनीति:

एनडीए को पता है कि विजय तो पक्की है, लेकिन अगर विपक्ष उम्मीदवार नहीं उतारे, और निर्विरोध चुनाव हो जाए, तो…

“मोदी सरकार का लोकतंत्र में विश्वास” जैसा नैरेटिव मिल जाएगा।  मीडिया में “सर्वसम्मति से चुना गया उपराष्ट्रपति” चल जाएगा। और विपक्ष दिखेगा बिखरा हुआ, असंगठित।

इतिहास क्या कहता है?

अब तक 16 बार हुए हैं उपराष्ट्रपति चुनाव — लेकिन सिर्फ 4 बार निर्विरोध चुनाव हुए हैं:

  • 1952 & 1962 – डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

  • 1979 – जस्टिस हिदायतुल्लाह

  • 1952 (नामांकन वापसी से निर्विरोध)

अब बीजेपी चाहती है कि 2025 में ये लिस्ट और लंबी हो जाए, और वो भी सीपी राधाकृष्णन के नाम से — क्या संयोग है!

“बहुमत में हूं फिर भी सिंगल हूं!”

बीजेपी की ये हरकत देखकर लगता है कि, “NDA को बहुमत नहीं, महबूबा चाहिए!”

“एक तरफ 427 सांसद, दूसरी तरफ कांग्रेस की चुप्पी – प्यार में इज्जत मिल जाए तो क्या बुरा है?”

विपक्ष का क्या इरादा?

अब तक विपक्ष ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। कुछ सूत्र कहते हैं कि ‘इंडिया गठबंधन’ को खुद समझ नहीं आ रहा कि

“नाम तय करें या गठबंधन को बचाएं?”

और तब तक राजनाथ जी मुस्करा रहे हैं – ‘देर करो, लेकिन जवाब देना ज़रूरी है!’

बहुमत में भी गठबंधन की कशिश क्यों?

राजनीति में सिर्फ जीतना नहीं, कैसे जीते, ये ज्यादा मायने रखता है। सीपी राधाकृष्णन का निर्विरोध चुना जाना, बीजेपी के लिए होगा एक राजनीतिक ट्रम्प कार्ड —जो विपक्ष को और भी असंगठित और कमजोर दिखा सकता है।

“सिर्फ नंबर नहीं, नैरेटिव जीतना असली राजनीति है।”

और अगर राजनाथ सिंह की चाय पार्टी के बाद कांग्रेस समर्थन दे दे, तो समझिए कि NDA ने सिर्फ उपराष्ट्रपति नहीं, विपक्ष का मोरल भी जीत लिया।

बहराइच के मुस्लिम युवकों ने कहा – मियां, अब तो विकास दिखता है

Related posts

Leave a Comment